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introduction of yoga | योग एक संक्षिप्त परिचय ---1 |

                              भूमिका

                             *********

योग आदिकाल के गर्भ में सुप्त कोई कहानी नही है, यह वर्तमान की सर्वाधिक कीमती विरासत है। यह वर्तमान समय की सबसे महत्वपूर्ण ओर भविष्य की संस्कृति है।
                            ---- स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

योग का अर्थ---- introduction of yoga

  योग शब्द का अर्थ होता है एकत्व या जोड़ना यह संस्कृत के धातु युज् से बना है। महर्षि पाणिनी ने योग शब्द की वियुत्पत्ति "यूजिर योगे", "युज् समाधौ" और "युज् संयमने" इन तीन धातुओं से मानी गयी है। प्रथम वियुतपत्ति का अर्थ जोड़ना, मिलाना, मेल आदि इसीलिए योग को आत्मा का परमात्मा से मिलान योग कहलाता है।
इसी संयोग की स्थिति को समाधि की संज्ञा दी गयी है।
महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में परिभाषित करते हुए कहा है----
"योगश्चित्तवृतिनिरोध:" यो.सू. 1/2
अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ही योग है। यहां चित्त का तात्पर्य अंतःकरण से है।
तदा द्रष्टु:सरूपेSवस्थानम्।। यो.सू. 1/3
योग की स्थिति में साधक (पुरुष) की चित्तवृत्ति निरुद्धकाल में कैवल्य अवस्था की भांति चेतन मात्रा (परमात्मा) स्वरूप में स्थित होता है।

introduction of yoga
introduction of yoga

इतिहास----

योग का इतिहास आदिकाल के समय से भी पुराण है। इसका वर्णन वेदों एवम पुराण में देखने को मिलता है, ऐसा माना जाता है कि योग का परिचय सर्वप्रथम भगवान शिव ने माता पार्वती को यह ज्ञान दिया था।
प्राचीन काल मे योग के ज्ञान को गुप्त रखा जाता था, उन्हें न तो लिपिबद्ध किया जाता था और न ही खुले रूप में सिखाया जाता था, उस काल मे यह ज्ञान गुरु शिष्य परम्परा के रूप में ही चलता था। सिंधु घाटी सभ्यता में योग का विस्तृत वर्णन तो नही मिलता पर योग के आसन प्रतीक के रूप में दिखते है।
महर्षि पतंजलि ने राजयोग पर प्रतिपादित योगसूत्र म् एक निश्चित योग विद्या का वर्णन किया जिसे अष्टांगयोग के नाम से जाना जाता है। अष्टांगयोग के अंतर्गत यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आते है।
ईशा पूर्व छठी सदी में भगवान बुद्ध ने ध्यान और सामाजिक आचरण को प्रमुखता दी, परंतु योगी मत्सयेन्द्रनाथ ने कहा कि ध्यान के अभ्यास से पहले शरीर और उसके तत्वों की शुद्धि अति आवश्यक है। इनके नाम पर एक आसान का नाम मत्स्येन्द्रासन नाम पड़ा।
इनके शिष्य ने हठयोग पर स्थानीय भाषा मे पुस्तके लिखी और योग को जान मानस तक पहुँचाया।
हठयोग के ज्ञाता स्वामी  स्वात्माराम ने "हठयोग प्रदीपिका" संस्कृत में लिखी।
आज के समय में योग की प्रासंगिकता --------
आज की 21वी. सदी में योग हमें अमूल्य विरासत के रूप में मिली हैं।  वैसे तो योग का प्रथम उदेश्य प्राणिमात्र को आधयात्मिक मार्ग के उच्चत्तम शिखर तक पहुँचना है, फिर भी योग के अभ्यास से सभी को प्रत्यक्ष रूप से लाभ अवश्य ही प्राप्त हुआ है।
योग की सबसे बड़ी उपलब्धि शरीरिक एवं आधयात्मिक रूप में लाभ देना है। योग दमा, मधुमेह, गठिया, रक्तचाप, जॉइन्ट पेन, पाचन संबंधी समस्या मे योग को वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। शेष आगे---योग एक संक्षिप्त परिचय --- 2

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