पतंजलि योगदर्शन
भारतीय दर्शन के अनुसार 9 दर्शन बताये गए है, जिनमे 6 आस्तिक व 3 नास्तिक दर्शन है।
इन आस्तिक दर्शनो म् सबसे प्रमुख महर्षि पतंजलि का योगसूत्र या योग दर्शन आता है।
महर्षि पतंजलि जी का जन्म लगभग 2 सदी ईसा पूर्व (2200 वर्ष पूर्व)/ भगवान बुद्ध के समकालीन मन जाता है। ये भी प्रख्यात है कि महर्षि पतंजलि शेषनाग के अवतार पुरुष थे।
पतंजलि ने योगसूत्र के अतिरिक्त पाणिनि व्याकरण, और आयुर्वेद का महान ग्रंथ चरक सहिंता लिखी थी।
महर्षि पतंजलि के योगदर्शन के कारण ही योग जान मानस के लिए सुलभ व सरल हो पाया है, अनयथा पहले तो योग का अभ्यास सम्प्रदायों और गुरु शिष्य परंपरा में ही बांध रह गया था।
इन आस्तिक दर्शनो म् सबसे प्रमुख महर्षि पतंजलि का योगसूत्र या योग दर्शन आता है।
महर्षि पतंजलि जी का जन्म लगभग 2 सदी ईसा पूर्व (2200 वर्ष पूर्व)/ भगवान बुद्ध के समकालीन मन जाता है। ये भी प्रख्यात है कि महर्षि पतंजलि शेषनाग के अवतार पुरुष थे।
पतंजलि ने योगसूत्र के अतिरिक्त पाणिनि व्याकरण, और आयुर्वेद का महान ग्रंथ चरक सहिंता लिखी थी।
महर्षि पतंजलि के योगदर्शन के कारण ही योग जान मानस के लिए सुलभ व सरल हो पाया है, अनयथा पहले तो योग का अभ्यास सम्प्रदायों और गुरु शिष्य परंपरा में ही बांध रह गया था।
![]() |
पतंजलि योगदर्शन |
समाधिपाद----1
अथ योगनुशासनम् ।। 1 ।।
व्याख्या:--
इस प्रथम श्लोक में ऋषि पतंजलि ने कहा है कि योग का प्रारंभ अनुशासन के साथ किया जाना चाहिये।
इस श्लोक में योग के शास्त्र को प्रारंभ करने को ऋषि पतंजलि के रहे है।
अथ का तात्पर्य यहाँ अब प्रारम्भ करने से लिया गया है, पतंजलि जी कहते है अब योग का अनुशासन प्रारम्भ करते है।
अथार्त:--
यह सूत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसी सूत्र में बताया गया है कि चित्त की जो वृत्तियां जो होती है उन का निरोध हो जाना/रुक जाना ही योग है
यह सूत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसी सूत्र में बताया गया है कि चित्त की जो वृत्तियां जो होती है उन का निरोध हो जाना/रुक जाना ही योग है
Comments
Post a Comment