What is dharna| धारणा क्या है?
धारणा क्या है इसका महर्षि पतंजलि जी ने योगदर्शन के पहले व दूसरे पाद में अष्टांग योग के बहिरंग साधनों का फल सहित वर्णन किया है। बाकी के तीन अंग धारणा, ध्यान, समाधि अंतरंग योग का वर्णन आगे देखने/पढ़ने को मिलेगा।
इस पाद में बताया गया है कि जब ये तीनो किसी एक ध्येय में आपने को पूर्णता को प्राप्त करते है तो इनका नाम संयम कहलाता है। क्योंकि योग की विभूति को प्राप्त करने के लिए संयम की आवश्यकता होती है तो इसलिए इसका वर्णन योगदर्शन के इन अङ्गों का वर्णन साधनपाद मे न करके विभूतिपाद मे किया गया है।
धारणा क्या है इसका वर्णन इस सूत्र में पढ़ने को मिलेगा।
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देशबंधश्चित्तस्य धारणा।। (योगदर्शन 3/1)
व्याख्या:--
परिभाषा:-
चित्त को किसी एक निश्चितविशेष मे स्थिर कर देना ही धारणा कहलाती है। इस को ऐसे समझ सकते है कि जब योगी ध्यान का अभ्यास करता है तब उसको ध्यान को एकाग्र करने के लिए किसी निश्चित व स्थिर जगह पर ध्यान को एकाग्र करना पड़ता है उसके लिए अभ्यासी किसी भी वस्तु (जैसे सूर्य, चंद्रमा, कुंडली, ईश्वर का स्वरूप, मूर्ति, नाभिचक्र आदि) को ध्यान में रख कर उसी में चित्त को एकाग्र कर देता है।![]() |
What is dharna| धारणा क्या है? |
दूसरी परिभाषा:--
योगी/साधक आपने चित्त को अपनी ही इच्छा से अपने ही भीतर किसी भी एक स्थान में स्थिर कर दे तो इसी अवस्था को धारणा कहते है।
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योगी/साधक आपने चित्त को अपनी ही इच्छा से अपने ही भीतर किसी भी एक स्थान में स्थिर कर दे तो इसी अवस्था को धारणा कहते है।
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शरीर मे मन को टिकने का स्थान:-
शरीर मे मन को स्थिर करने के मुख्य स्थान मस्तक, भूमध्य, नासिकाग्र, जिह्वा का अग्र भाग, हृदय, नाभि आदि है, परन्तु इनमे से सर्वोत्तम स्थान हृदय प्रदेश को मन जाता है।(यहां हृदय प्रदेश का अर्थ शरीर के हृदय नामक अंग के स्थान से न होकर छाती के बीच जो गड्ढा होता है उस से है)।
बहुत ऐसे साधक है जो धारणा का अभ्यास लंबे समय से कर रहे है और उनको धारणा ही ध्यान प्रतीत होने लगा है, ऐसा नही करना चाहिए। धारणा केवल मन को टिकाये रखना ही है, और ध्यान धारणा की अगली अवस्था है।
शरीर मे मन को स्थिर करने के मुख्य स्थान मस्तक, भूमध्य, नासिकाग्र, जिह्वा का अग्र भाग, हृदय, नाभि आदि है, परन्तु इनमे से सर्वोत्तम स्थान हृदय प्रदेश को मन जाता है।(यहां हृदय प्रदेश का अर्थ शरीर के हृदय नामक अंग के स्थान से न होकर छाती के बीच जो गड्ढा होता है उस से है)।
बहुत ऐसे साधक है जो धारणा का अभ्यास लंबे समय से कर रहे है और उनको धारणा ही ध्यान प्रतीत होने लगा है, ऐसा नही करना चाहिए। धारणा केवल मन को टिकाये रखना ही है, और ध्यान धारणा की अगली अवस्था है।
धारणा का अभ्यास कैसे करें--
प्रारम्भ मे शरीर से बाहर ॐ, गायत्री मंत्र आदि मे धारणा कुछ ही समय तक करें, लंबे समय तक शरीर से बाहर धारणा नही करनी चाहिए।
जहाँ धारणा की जाती है वही ध्यान करने का भी विधान है, क्योंकि धरना ओर ध्यान के एक हो जाने से ही समाधि की अवस्था आती है, ओर उसी अवस्था मे प्रभु के दर्शन हो पाते है इसलिए ऐसा भी कहाँ जाता है कि धारणा शरीर के बाहर नही करनी चाहिए।
योग साधक को आरम्भ में आँखें खोल कर बाहर धारणा का अभ्यास करना चाहिए तथा जैसे जैसे अभ्यास जैसे जैसे गहरा होता जाएगा आंखे बंद कर के भी धारणा लगने लगेगी।
2. मन में जो भी विकार आते है उनको दूर करने में सहायता मिलती है।
3. मन मे प्रसन्नता आती है, मन शांत होता है, तृप्ति की अनुभूति होती है।
4. यह ध्यान से पूर्व की तैयारी है।
5. ध्यान अच्छा लगता है।
6. मन की चंचलता समाप्त होती है।
जहाँ धारणा की जाती है वही ध्यान करने का भी विधान है, क्योंकि धरना ओर ध्यान के एक हो जाने से ही समाधि की अवस्था आती है, ओर उसी अवस्था मे प्रभु के दर्शन हो पाते है इसलिए ऐसा भी कहाँ जाता है कि धारणा शरीर के बाहर नही करनी चाहिए।
योग साधक को आरम्भ में आँखें खोल कर बाहर धारणा का अभ्यास करना चाहिए तथा जैसे जैसे अभ्यास जैसे जैसे गहरा होता जाएगा आंखे बंद कर के भी धारणा लगने लगेगी।
धारणा के लाभ|Benifits of dharna:-
1. मन मे एकाग्रता आती है।2. मन में जो भी विकार आते है उनको दूर करने में सहायता मिलती है।
3. मन मे प्रसन्नता आती है, मन शांत होता है, तृप्ति की अनुभूति होती है।
4. यह ध्यान से पूर्व की तैयारी है।
5. ध्यान अच्छा लगता है।
6. मन की चंचलता समाप्त होती है।
मन एकाग्र क्यों नही होता?|
1. सांसारिक मोह माया मे पड़े रहने से।
2. मन मे सात्विक विचारो का आभाव होना।
3. मन जड़ है इस का ज्ञान न रखना।
4. ईश्वर का प्रत्येक कण में वास है इस बात को न मानना।
5. बार - बार मन की टिकाये रखने में संकल्प शक्ति की कमी।
6. मन शांत होता है ये भूलकर उसे चंचल समझना।
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ऐसे कई कारण है जिससे मन धारणा स्थल पर टिका नही रहता, इन कारणों को जानकर उन्हें दूर करने का अभ्यास करते रहना चाहिए जिससे मन लंबे समय तक टिक रहता है।
1. सांसारिक मोह माया मे पड़े रहने से।
2. मन मे सात्विक विचारो का आभाव होना।
3. मन जड़ है इस का ज्ञान न रखना।
4. ईश्वर का प्रत्येक कण में वास है इस बात को न मानना।
5. बार - बार मन की टिकाये रखने में संकल्प शक्ति की कमी।
6. मन शांत होता है ये भूलकर उसे चंचल समझना।
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ऐसे कई कारण है जिससे मन धारणा स्थल पर टिका नही रहता, इन कारणों को जानकर उन्हें दूर करने का अभ्यास करते रहना चाहिए जिससे मन लंबे समय तक टिक रहता है।
साधको द्वारा की गयी गलतियां|
योग साधना में कुछ साधक ऐसे होते है जो धारणा के महत्व को नही समझ पाते और सीधे ध्यान में जाने का प्रयास करने लगते है, इससे नुकसान ये होता है कि उनका न तो ध्यान ही लगता है और न ही वे धारणा में जा पाते है, इससे केवल उनका बहुमूल्य समय व्यर्थ होता है। इसलिए धारणा के बाद ही ध्यान में जाने का विधान बताया गया है।
प्रारंभिक योग साधको, योगियों को ध्यान करते समय ध्यान की अवस्था मे बीच- बीच मे धारणा स्थल का ज्ञान बनाये रखना चाहिए जिससे मन मे भटकाव की अवस्था उत्पन्न न हो पायें।
धारणा भी उसी अवस्था तक सफल होती है जिस अवस्था या जिस लगन से योगी ने योग के प्रारम्भिक पांचो अङ्गों को सिद्ध किया हुआ हो।
योग साधना में कुछ साधक ऐसे होते है जो धारणा के महत्व को नही समझ पाते और सीधे ध्यान में जाने का प्रयास करने लगते है, इससे नुकसान ये होता है कि उनका न तो ध्यान ही लगता है और न ही वे धारणा में जा पाते है, इससे केवल उनका बहुमूल्य समय व्यर्थ होता है। इसलिए धारणा के बाद ही ध्यान में जाने का विधान बताया गया है।
प्रारंभिक योग साधको, योगियों को ध्यान करते समय ध्यान की अवस्था मे बीच- बीच मे धारणा स्थल का ज्ञान बनाये रखना चाहिए जिससे मन मे भटकाव की अवस्था उत्पन्न न हो पायें।
धारणा भी उसी अवस्था तक सफल होती है जिस अवस्था या जिस लगन से योगी ने योग के प्रारम्भिक पांचो अङ्गों को सिद्ध किया हुआ हो।
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